Dashmularishta
200 Ml
₹120
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Manufactured By: Shree Dhootapapeshwar Ltd.
Composition/Ingredients: दशमूल, चित्रक, पुष्करमुल, लोध्र, गिलोय, अमला, खैर की छल, हरद की छाल, कुठ, मंजिस्ट, देवदारु, वायविडंग, मुलेहती, भारंगी, कबीट, बहेड़ा सांठी की जड़, चव्य, जटामांसी, गऊला, अनंतमूल, स्याह जीरा, निसोत, रेणुका बीज, रासना, पिप्पली, सुपारी, कचूर, हल्दी, सुवा, पद्मा कसता, नागकेशर, इन्द्रजाव, काकड़ा सिंगी, विदारीकन्द, असगंध, मुलहटी, वर्रही कांड, मनुक्का, धाई फूल, शीतल मिर्ची, नेत्रबाला, सफ़ेद चन्दन, जैफाल, लवंग, दालचीनी, इलायची, तेजपन, पिप्पली, नागकेशर, कस्तूरी
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Description:
दश्मूलारिस्ट:
आयुर्वेदिक टॉनिक के रूप में सर्वत्र उपयोग किया जाता है -
सग्रहानी, अरुचि, स्वास, गुलमा, भगंदर, वातरोग, क्षय, वमन,पांडू, कामला, कुस्था, अर्श, प्रमेह, मन्दाग्नि, उदररोग, अश्मरी, मुत्रक्रिच्चा, धातुक्षय, आदि दोष को दूर करता है | दुर्बल व्यक्ति को बलवान बनाने में मदद करता है | स्त्रियों की गर्भाशय की शुद्धि करता है | बन्ध्या स्त्री को संतान देने में मदद करता है | एवं तेज, बल, और वीर्य को बढ़ता है | यह औषधि विशेषकर Vata Vyadhi(वात व्याधि), Daurbalya (दौर्बल्य), Prasavottar Roga (प्रसवोत्तर रोग), मूत्ररोग का नशा करता है |
दश्मूलारिस्ट: यह औषधि प्रसूता स्त्री के लिए अत्यंत हितकर है |पहले १० दिन में प्रसूता को देते रहने से मन्दाग्नि, जीर्ण ज्वर, कास, स्वास, वाट विकृति, आदि दोषों के उत्पन्न होने का दर खत्म हो जाता है | और प्रकृति सामान्य बनी रहती है | इस अरिष्ट में स्तंभक गुण होने की वजह से प्रसूता स्त्री में अतिसार, रक्तातिसार, संग्रहणी, आदि विकारों में भी उपकारक हैहै |
गर्भाशय की शिथिलता या अन्यारोग विकृति के कारन बार बार गर्भस्त्राव हो जाना या गर्भा धारण ही न हिना, यदि संतान हुई हो तो वह भी रोंगी कृष होना, ऐसे विकारों में दशमूलारिष्ट उत्तम औषधि है | जी स्त्रियों को गर्भाशय की अशक्ति के कारन गर्भधारण नहीं होता, गर्भाशय को पुष्ठ कर संतान प्राप्त करता है | एवं पुरुषो के लिए शुक्र शुद्धिकर और वृधिकार होता है |
जीर्ण संग्रहणी रोगों में मन्दाग्नि होकर शारीर कृष हो जाता है | ऐसे समय भोजन कर लेने पर दशमूलारिष्ट देना अति लाभदायक है | प्रसूता में ज्वर रोगाधिकार के लिए अति उत्तम उपयोगी है | प्रसव उपरांत तुरंत दशमूलारिष्ट का सेवन शुरू करना चाहिए |
भगंदर का व्रण जब तुरंत शल्य क्रिया के बाद भी नहीं भरता है या जीर्ण नाड़ी व्रण में भी जब लगातार पुय स्त्राव होता रहता है | रक्तादी धातुओ की रोग निरोधक शक्ति कम होने की अवस्था में दशमूलारिष्ट एक अत्यधि उपयोगी अरिष्ट है |
वातवाहिनियों और स्नायुओ में प्रेरणा, प्रस्पंदन, और उद्वहन कार्य, रक्तवाहिनियों और रसवाहिनियों, में पूर्ति और उद्वहन आदि कार्य तथा सचेतन परमाणु, घटक (कोशाणु) और मानस क्षेत्र में विवेक कार्य इन सबकी दुष्टि वात रोग में समाविष्ठ की है | इस अरिष्ट में वातशामक गुण होने से यह संकोच, मेड, स्तम्भ, कलाय्खंज, खाल्ली, विश्वाची, ग्रिधासी, आदि वात रोगों पर अति लाभप्रद माना गया है |
अस्थिक्षय के विकारों दशमूलारिष्ट उत्तम औषधि मानी जाती है | विशेषतः प्रसव पश्चात् | अस्थिमार्दाव होकर कमर दर्द होना, चलने में दोनों पैर पर खूब भर देकर चलना, पैर कठिनता से उठाकर चलना, अस्थिसंधी पर गांठ उत्पन्न होने, मंद मंद ज्वर रहना आदि लक्षण में दशमूलारिष्ट अति प्रशस्त औषधि है |
पित्ताप्रधान विकृति मे दशमूलारिष्ट न दे |
अन्य लक्षण में जैसे : सग्रहानी, अरुचि, स्वास, गुलमा, भगंदर, वातरोग, क्षय, वमनपंडू, कामला, कुस्था, अर्श, प्रमेह, मन्दाग्नि, उदररोग, अश्मरी, मुत्रक्रिच्चा, धातुक्षय, आदि दोष को दूर करता है | दुर्बल व्यक्ति को बलवान बनाने में मदद करता है | स्त्रियों की गर्भाशय की शुद्धि करता है | बन्ध्या स्त्री को संतान देने में मदद करता है | एवं तेज, बल, और वीर्य को बढ़ता है | यह औषधि विशेषकर Vata Vyadhi(वात व्याधि), Daurbalya (दौर्बल्य), Prasavottar Roga (प्रसवोत्तर रोग), मूत्ररोग का नशा करता है |
Product Uses:
How to use:
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